राजस्थान उपचुनाव / तीसरे राउंड के बाद भी खींवसर-मंडावा दोनों सीटों पर कांग्रेस आगे, मतगणना जारी

जयपुर. गुरुवार को झुंझुनूं जिले की मंडावा व नागौर की खींवसर विधानसभा सीट पर उपचुनाव के परिणाम सामने आएंगे। जिसके लिए मतगणना शुरू हो गई है। खींवसर से आरएलपी के नारायण बेनीवाल और कांग्रेस के हरेंद्र मिर्धा में कड़ा मुकाबला है। वहीं, दूसरी तरफ मंडावा में कांग्रेस की रीटा चौधरी ने प्रारंभिक रुझानों में बढ़त हासिल की है। उनका मुकाबला भाजपा की सुशीला सिंगड़ा से हैं। यहां 21 अक्टूबर को वोटिंग हुई थी।


खींवसर सीट



































राउंडनरायण बेनीवाल (आरएलपी)हरेंद्र मिर्धा (कांग्रेस)अंतर
पहला3381 वोट4477 वोट1046 वोटों से हरेंद्र मिर्धा आगे
दूसरा6944 वोट9189 वोट2242 वोटों से हरेंद्र मिर्धा आगे
तीसरा10592 वोट14025 वोट3433 वोटों से हरेंद्र मिर्धा आगे
चौथा   

मंडावा सीट



































राउंडसुशीला सिंगड़ा (भाजपा)रीटा चौधरी (कांग्रेस)अंतर
पहला2837 वोट4981 वोट2144 वोटों से रीटा चौधरी आगे
दूसरा2069 वोट4224 वोट2155 वोटों से रीटा चौधरी आगे
तीसरा2731 वोट4719 वोट1988 वोटों से रीटा चौधरी आगे
चौथा2844 वोट4402 वोट1558 वोटों से रीटा चौधरी आगे


लोकसभा चुनाव के बाद खाली हुईं थी दोनों सीटें


2018 विधानसभा चुनाव में खींवसर से हनुमान बेनीवाल और मंडावा से नरेंद्र खींचड़ विधायक बने थे, जिसके बाद हनुमान बेनीवाल के नागौर सीट से और नरेंद्र खींचड़ के झुंझुनू सीट से लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करने के बाद दोनों सीटें खाली हो गई थी। खींवसर सीट हनुमान बेनीवाल का गढ़ मानी जाती है। वे यहां से तीन बार विधायक भी रह चुके हैं।


मंडावा : अब तक सिर्फ एक बार जीती भाजपा
मंडावा में 1952 से लेकर अब तक हुए चुनावों में भाजपा सिर्फ एक बार 2018 में ही विधानसभा चुनाव जीती है। इस सीट पर विकास बड़ा चुनावी मुद्दा है, लेकिन कर्मचारियों के तबादले भी इस समय मुद्दा बन गए हैं।


सुशीला (भाजपा)
मजबूती : तीन बार से प्रधान, इसलिए ग्राउंड कनेक्ट अच्छा। भाजपा आक्रामक प्रचार कर रही है।
कमजोरी : पार्टी में पैराशूटर की इमेज। पहले कांग्रेस में थीं, लेकिन टिकट मिलने से पहले भाजपा में आईं।
 
रीटा (कांग्रेस)
मजबूती : प्रदेश में कांग्रेस की सरकार। डोर-टू-डोर कैंपेनिंग। तीन बार से चुनाव लड़ रही हैं। एक बार जीतीं, 2 बार हारी। थोड़ी सहानुभूति है।
कमजोरी : भितरघात का संकट। प्रचार में अकेली पड़ी। पार्टी के विधायक बृजेंद्र ओला व राजकुमार से उनकी अदावत किसी से छिपी नहीं है।


खींवसर : 40 साल पुरानी सियासी लड़ाई
40 साल पुरानी मूंडवा की लड़ाई खींवसर आ पहुंची है। मूंडवा में 1980 में बेनीवाल के पिता रामदेव को हरेंद्र मिर्धा ने हराया था। 1985 में रामदेव ने मिर्धा को हराया। मूंडवा व नागौर से ही 2008 में खींवसर सीट बनी। अब रामदेव के बेटे नारायण व मिर्धा में मुकाबला है। यहां खास चुनावी मुद्दा नहीं।


नारायण बेनीवाल (आरएलपी)


मजबूती : इलाके में अपने भाई हनुमान का सारा काम वही संभालते हैं इसलिए पब्लिक कनेक्ट पहले से है। भाई के उलट सॉफ्ट इमेज है।
कमजोरी : परिवारवाद का ठप्पा। भाजपा के नेता तो इनके साथ जुटे हैं, लेकिन इनके काेर वोटरों में कुछ नाराजगी है।


हरेंद्र मिर्धा (कांग्रेस)
मजबूती : प्रदेश में कांग्रेस की सरकार। विरोधी खेमे में भी इमेज पॉजिटिव। साइलेंट कैंपेन। आखिरी चुनाव, सहानुभूति भी मिल सकती है।
कमजोरी : उम्र आड़े आ रही। उनके सामने आधी उम्र के प्रत्याशी, जो प्रचार कर रहे हैं कि जो आपके लिए भागदौड़ न कर सके, उसे वोट क्यों दें।